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जीडीपी पस्त, सरदार मोर संग मस्त ,विपक्ष अस्त

Breaking News अर्थ जगत आज की रिपोर्ट पाठकों की तरफ से 

अपनी गलती को मानने के लिए 56 इंच का सीना नहीं , 30 इंच के सीने में थोड़ी सी हिम्मत की ज़रूरत हैं। सफलता मिली तो सरदार को असरदार कहना और असफलता मिली तो पुराने सरदारों को कोसना, क्या ये जायज हैं ? जब पुराने सरदारों का समस्याओं से दूर-दूर तक कोई भी लेना देना ना हो तो भगवान् के उपर ठीकरा फोड़ दो ( सरदार के साथी के #एक्टऑफ़गॉड वाले दोषारोपण  को भूले तो नहीं हैं ना !!!!)। वहीँ भगवान् जिसके राम-नाम भरोसे आज सूबे की सरदारी मिली हैं, उसको भी नहीं बक्शा गया !!

देश की अर्थव्यवस्था जमीन से 24 मील गहरे गर्त में जा चुकी हैं। वेतनभोगी वर्ग की जॉब जा रहीं हैं या उनकी वेतन वृद्धि नहीं हो रहीं। जीएसटी मीटिंग में सर फुटोल हो रहीं हैं। कोरोना लॉग जंप कर हरएक दिन नए-नए रिकॉर्ड बना रहा है।भारत को फाइव ट्रिलियन डॉलर यानी पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था दिखाने वाला सपना भी अब एक और जूमला लगता हैं । अगर सरदार ने जूमले देने के जगह देश की  अर्थव्यवस्था को गमले में रख कर अच्छे से देखभाल किया होता तो यह जूमला भी एक ख्यालीपुलाव नहीं होता । चीन आए दिन हमारे सीमा में घुस कर आँखे दिखाता हैं। सरदार के मुहं से एक बार भी चीन का नाम नहीं निकला । अगर ऐसी हरक़त सरदार का नापाक कमजोर पड़ोसी करता तो सरदार के तेवर ही कुछ और होते । अगर आपकों लगता हैं की इतनी सारी समस्या एक साथ कैसे आ सकती है तो गलती आपकी हैं, सरदार ने वादा किया था, “सरदार है तो मुमकिन हैं”

जनता जब कोरोना काल में तकलीफ से त्राहिमान त्राहिमान का मचा रहीं है शोर, सरदार नचाए मोर और गाए “भोर भयो, बिन शोर, मन मोर, भयो विभोर….”

सरदार के सोशल मीडिया पर फॉलोअर की संख्या बता कर सरदार की पॉपुलैरिटी की बात की जाती हैं लेकिन जब सरदार की नाकामी का विरोध एक वीडियो पर डिसलाइक और कमेंट कर के दिखाया जाता हैं तो सरदार के गूर्गे ने क्या किया जगजाहिर हैं। अतीत में सूबे में लगे आपातकाल का विरोध कर सत्ता पर पहुचने वाला सरदार आज खुद ही अपने खिलाफ विरोध को दबाने में लगा हुआ हैं । सरदार की खिलाफत को देश की खिलाफ़त को बहुत ही गुपचुप तरीके से दब्दिल कर दिया जाता हैं।

Recession की फ़िक्र जनता की तबियत ना ख़राब कर दे इसलिए जनता की सेहत को ध्यान में रखते हुए Rheacession को मीडिया के माध्यम से हर घर में पहुंचा दिया जाता हैं। जीडीपी और रोज़गार के गिरते नंबर की फ़िक्र करने के लिए सरदार ने जो साथी चुना वह बहुत ही धार्मिक ( लहसून और प्याज तक नहीं खाने वाले) और  भगवान (#एक्टऑफगॉड) पर संपूर्ण विश्वास करने वाले हैं। ताई को देख कर एक बहुत सुंदर चौपाई याद आती हैं , निर्मल मन जन सो तोहि पावा। तोहि कपट छल छिद्र न भावा। जय सियाराम, जय जय सियाराम !!”

कोई भी सूबा तभी तरक्की करता है जब सूबेदार के शुभचिंतक उससे वेहिचक अपनी बात कह सके और सूबेदार का विरोधी मजबूत हो । सूबे की लोगों की बदकिस्मती तो देखिए सूबेदार के अपने लोगों में हिम्मत नही हैं कुछ बोलने की और सूबेदार के विरोधियों के जीवन में 2014 में हुआ सूर्यास्त आज जस का तस हैं। विपक्ष के सरदार का अपडेटेड वर्शन (1.0, 2.0 , 3.0…….) मोबाइल के सॉफ्टवेर के अपडेटेड वर्शन से ज्यादा बार आया हैं। लेकिन हर नया वर्शन पिछले वर्शन के कमियों के साथ नए इशू और बेकार फीचर के साथ लांच होता हैं। सरदार के भक्त सरदार को कहते भी हैं , “क्यों पड़े हो चक्कर में जब पप्पू हैं टक्कर में।“

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